मोबाइल में ऐप डाउनलोड करते ही शुरू हो जाता है डाटा के उपयोग का खेल
आजकल अमूमन हर किसी के पास स्मार्टफोन होता है। अगर आपके पास स्मार्टफोन है तो फोन में एप भी इंस्टाल करते ही होंगे। फिर चाहे फेसबुक का एप हो या व्हाट्सेप का। इसके साथ ही और भी कई तरह के सोशल मीडिया एप लोड करने भी जरूरी हो जाते हैं। जिनके डाउनलोड करने पर हमेशा उन्हें ई-मेल आईडी या फिर फोन नंबर से कनेक्ट करना होता है। अभी फेसबुक, नरेंद्र मोदी एप और कांग्रेस पार्टी के एप से डाटा लीक होने की खबरें सुर्खियों में हैं। लेकिन क्या आप ये बात जानते हैं कि जिन एप्स को आप डाउनलोड करते हैं वो आपकी पिक्चर गैलरी तक भी आसानी से पहुंच जाते हैं। यहां तक कि वह एप जिनको आपके डाटा की बिल्कुल जरूरत नहीं है वह भी डाउनलोड करते समय ई-मेल आई और फोन नंबर का एक्सेस मांगते हैं।
एप की पॉलिसी में भी यह बात होती है कि वह आपके डाटा की पूरी जानकारी रखता है और उसे किसी तीसरी पार्टी को दे देता है। पॉलिसी में इन सब बातों का उल्लेख भी होता है। इसका मतलब आपके एप के पास आपकी पूरी जानकारी होती है।
डाटा लीक पर मास्टरिंग मेटास्प्लॉट, मेटोप्लॉयट बूट कैंप जैसी किताब लिखने वाले निपुन जायसवाल का कहना है कि डाटा तब से लीक हो रहा है जब से लोगों ने स्मार्टफोन इस्तेमाल करना शुरू किया है। इसे तीसरी पार्टी को दे दिया जाता है जिसका प्रयोग कई तरह से किया जाता है। उदाहरण के तौर पर जिन चीजों को आप गूगल पर सबसे ज्यादा सर्च करते हैं उससे संबंधित विज्ञापन आने लगते हैं। या फिर जिस तरह का कंटेंट आप पढ़ते हैं उससे संबंधित कंटेंट भी प्राथमिकी तौर पर आने लगता है।
आईटी एक्ट में भी डाटा लीक को परिभाषित किया गया है, लेकिन परेशानी यह है कि अगर आपका डाटा कोई कंपनी किसी तीसरी पार्टी को दे भी दे तो इसपर किसी प्रकार का कोई कानून नहीं बना है। बावजूद एप डाउनलोड करने पर आपकी फोटो गैलरी, कलेंडर, माईक आदि की अनुमति मांगी जाती हैं। लेकिन अगर किसी एप की पॉलिसी आपने पढ़ भी ली और उसने पॉलिसी का पालन नहीं किया फिर भी आप कुछ नहीं कर सकते। क्योंकि देश में डाटा प्रोटेक्शन कानून अभी तक नहीं बना है।
एप की पॉलिसी में भी यह बात होती है कि वह आपके डाटा की पूरी जानकारी रखता है और उसे किसी तीसरी पार्टी को दे देता है। पॉलिसी में इन सब बातों का उल्लेख भी होता है। इसका मतलब आपके एप के पास आपकी पूरी जानकारी होती है।
डाटा लीक पर मास्टरिंग मेटास्प्लॉट, मेटोप्लॉयट बूट कैंप जैसी किताब लिखने वाले निपुन जायसवाल का कहना है कि डाटा तब से लीक हो रहा है जब से लोगों ने स्मार्टफोन इस्तेमाल करना शुरू किया है। इसे तीसरी पार्टी को दे दिया जाता है जिसका प्रयोग कई तरह से किया जाता है। उदाहरण के तौर पर जिन चीजों को आप गूगल पर सबसे ज्यादा सर्च करते हैं उससे संबंधित विज्ञापन आने लगते हैं। या फिर जिस तरह का कंटेंट आप पढ़ते हैं उससे संबंधित कंटेंट भी प्राथमिकी तौर पर आने लगता है।
आईटी एक्ट में भी डाटा लीक को परिभाषित किया गया है, लेकिन परेशानी यह है कि अगर आपका डाटा कोई कंपनी किसी तीसरी पार्टी को दे भी दे तो इसपर किसी प्रकार का कोई कानून नहीं बना है। बावजूद एप डाउनलोड करने पर आपकी फोटो गैलरी, कलेंडर, माईक आदि की अनुमति मांगी जाती हैं। लेकिन अगर किसी एप की पॉलिसी आपने पढ़ भी ली और उसने पॉलिसी का पालन नहीं किया फिर भी आप कुछ नहीं कर सकते। क्योंकि देश में डाटा प्रोटेक्शन कानून अभी तक नहीं बना है।
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